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आख्यान ]
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दमयन्ती

सुन लिया है। बेटी! मैंने तुमको कभी देखा ही नहीं था। तुम तो मेरी गोद की लड़की हो। तुमने मुझसे छिपाया क्यों? मैंने तुम्हारा असली परिचय न पाकर न जाने कब कैसा बर्ताव किया हो। ख़ैर, उसका कुछ ख़याल मत करना।

राज-महल में धूम मच गई। चारों ओर यही चर्चा होने लगी कि जो नई स्त्री आई है, वह विदर्भ की राज-कुमारी और निषध-राज की रानी है। वह राजमाता की रिश्तेदारिन है। आज विदर्भराज के भेजे हुए एक ब्राह्मण ने आकर दमयन्ती को पहचाना है।

राजमाता की आज्ञा से सुदेव की बड़ी ख़ातिरदारी हुई। दूसरे दिन शुभ मुहूर्त में राजमाता ने बहुतसे कपड़े और गहने देकर दमयन्ती को बड़े आदर-मान से विदर्भ देश को भेजा।

[ १३ ]

मयन्ती ने नैहर पाकर माता-पिता के चरणों की वन्दना की। प्राणों से प्यारी लड़की के वियोग से राजा-रानी का मन बहुत उदास हो गया था। आज दमयन्ती को देखकर उनकी आँखों से आँसुओं की धारा बह चली। नैहर में दमयन्ती का बड़ा आदर-मान होने लगा, किन्तु यह उसको अच्छा नहीं लगता था। नल के विरह की आग उसके हृदय को सदा जलाती रहती थी। माता-पिता से इतना आदर पाकर भी दमयन्ती दिन-दिन दुबली और पीली होने लगी। राजा ने नल को ढूँढ़ने के लिए, फिर देश-देश में आदमी भेजने का बन्दोबस्त किया। दमयन्ती ने उन सब आदमियों से कह दिया---"आप लोग देश-देश में घूमते समय एक पद कहिएगा। अगर कोई आदमी इसका उत्तर दे तो आप लोग उसका सब हाल-हवाल मालूम कर लीजिएगा। दमयन्ती ने हर एक दूत को यह पद लिख दिया---