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[चौथा
आदर्श महिला

गाढ़ा होता जाता है। ऐसा जान पड़ता है कि रात्रिदेवी ने राजा और रानी के दुःख से चुप होकर काले कपड़े से अपना मुँह ढक लिया है। पृथिवी सुनसान है। बादलों के टुकड़ों से ढक रहे रात्रि के आकाश में दो-एक तारों की चमक दिखाई देती है। इसी समय रानी और कुँवर रोहिताश्व को लेकर राजा राजमहल से निकल पड़े। मंत्री, अन्यान्य राज-कर्मचारी और अयोध्या की बहुतसी प्रजा राजा के पीछे-पीछे जाने लगी।

धीरे-धीरे सब लोग राजधानी से निकलकर मैदान में आ गये। राजा ने हृदय के शोक की तरङ्ग को रोककर रोती हुई प्रजा से कहा—तुम लोग अब घर लौट जाओ; मेरे साथ मत चलो। शोक से रँगे हुए इस पवित्र दृश्य को शायद महर्षि न सह सकें। मैं तुम लोगों के भविष्य, और अयोध्या के राजसिंहासन की हालत को सोचकर चिन्ता कर रहा हूँ। मंत्री, शान्त होओ। मेरे साथ आने का अब तुम लोगों को अधिकार नहीं। तुम कोशलदेश के राजसिंहासन के दाहिने हाथ हो। आशा है, इस बात को याद रखकर काम करोगे।

मंत्री और अयोध्या के लोग रोने लगे। सबने कहा—जिस राज्य में महाराज हरिश्चन्द्र नहीं वह राज्य मरघट के समान है। महाराज! आपके ऐसे राजा को छोड़कर हम लोग यहाँ कैसे रहेंगे? कोशल का राजसिंहासन आपके सदृश आदर्श राजा के पवित्र चरणों की रज पड़ने से पवित्र हुआ है।

राजा ने समझा-बुझाकर मंत्री और प्रजा को बिदा किया। इतने में आकाश बादलों से ढक गया। मूसलधार वर्षा क्या होने लगी मानो प्रकृति सुन्दरी राजा के दुःख से आँसू बहाने लगी। अनन्त आकाश मानो कड़ककर निठुर विश्वामित्र की निर्दयता को बार-बार धिक्कारने लगा।