के शोक से विकल रानी की दुःखभरी गुहार सुनकर पशु-पक्षी टकटकी लगाकर सती के चारों ओर खड़े हो गये।
धीरे-धीरे सन्ध्या हो चली। दासी को अब तक न लौटते देखकर ब्राह्मण को फ़िक्र हुई। उसने वन में जाकर देखा कि लड़के की लाश को छाती से लगाये दासी रो रही है। हाय! इस निर्जन वन में उसको ढाढ़स देनेवाला कोई नहीं है। पुत्र-शोक से विह्वल रानी की पगली सूरत देखकर ब्राह्मण एकाएक ठिठक गया। वह बड़े कष्ट से दासी के पास जाकर उसे समझाने-बुझाने लगा। ढाढ़स की बातें सुनने से शैव्या का शोक और भी उमड़ आया।
ब्राह्मण से दासी का यह शोक देखा नहीं गया। उसकी आँखें भी आँसुओं से भीग गईं। उसने कहा—बेटी! ढाढ़स बाँधो, शोक छोड़ो। इस पृथिवी पर सबको उसी रास्ते जाना होगा। हम लोगों की समझ में यह बात नहीं आती, इसी से इतना दुःख भोगते हैं। बेटी! शोक छोड़कर मरे हुए लड़के की दाह-क्रिया करो।
दाह-क्रिया का नाम सुनकर सती का शोक चौगुना बढ़ गया। उसने व्याकुल होकर कहा—"महाराज! माता होकर मैं बेटे की दाह-क्रिया करूँगी? हाय विधाता! तुम्हारे जी में यह भी था! इतना दुःख देने पर भी तुझे कुछ दया न आई! हा नाथ! अब तो नहीं सहा जाता।" शैव्या इस प्रकार विलाप करती बालक की लाश को गोद में लेकर धीरे-धीरे मरघट की ओर चली। तारा से भरे नीले आकाश ने शैव्या के दारुण खेद को देखकर मानो तारे-रूपी अपने नेत्रों को बादलों से ढक लिया।
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वरुणा के तट पर काशी के मसान-घाट में कई चिताएँ जल रही हैं। पास ही, एक डोम एक पेड़ के नीचे खड़ा होकर पहले