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[चौथा
आदर्श महिला

रास्ता दिखायेगा? यह सोचते-सोचते स्त्री व्याकुल हो गई। अचानक बिजली चमकी। उसके ज़रा देर के उजेले में स्त्री ने देखा कि सामने कोई खड़ा है। स्त्री ने घबराकर पूछा—इस अँधेरे में तुम कौन हो?

बेजान-पहचानवाले ने कहा—मैं डोम हूँ। इस मरघट में मुर्दा जलाना मेरा काम है। आओ, जल्द तुम अपना काम करो। क्यों व्यर्थ शोक करती हो? संसार की रीति ही ऐसी है। एक जाता है और एक आता है। काल-चक्र में जीव का यह आना-जाना पेचीदा बातों से भरा हुआ है। विश्व-नाथ के इस उद्देश को माया से बँधे हुए मनुष्य बिलकुल नहीं समझ सकते। मैं इस मरघट में इसको अपनी आँखों देख रहा हूँ। इसी से कहता हूँ कि तुम इतनी क्यों घबराती हो—क्यों इस प्रकार रोती-कलपती हो? धीरज धरो।

एक बे-पहचाने हुए की इन बातों को सुनकर स्त्री ज़रा होश में आई, उसे कुछ ढाढ़स हुआ। कठिन विपत्ति में समझाने से सिर्फ़ आँसू ही बढ़ते हैं। रानी की आँखों में आँसुओं की धारा उमड़ आई। उन्होंने गिड़गिड़ाकर कहा—डोम! तुम आदमी नहीं, कोई देवता हो। ऐसा न होता तो तुम्हारा हृदय इतना कोमल कैसे होता। तुममें इतनी सहानुभूति और इतना ऊँचा ज्ञान कैसे होता। हे देवता! तुम मेरी आँखों की पुतली को ढूँढ़ दो—अभागिनी के एकमात्र आश्रय को अमृत छिड़ककर फिर से जिला दो।

डोम ने कहा—देवी! मैं झूठ नहीं कहता। मैं तुम्हारे ही समान मनुष्य हूँ; नहीं नहीं, मनुष्य से भी अधम मुर्दा जलानेवाला मरघट का डोम हूँ। तुम सन्देह क्यों करती हो? अब देर मत करो। अपने लड़के की लाश जलाने के लिए पाँच गण्डा कौड़ी दो। मैं जलाने के लिए आग देता हूँ।

पाँच गण्डे कौड़ियों की बात सुनकर शैव्या का प्राण सूख