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आदर्श महिला

बन जाती है। तुमने जैसा मेरा अपमान किया है, वैसा ही व्यवहार मैं तुम्हारे साथ करूँगा। महाराज! ठीक समझना कि मेरी नज़र तुम्हारे ऊपर पूरे तौर से पड़ेगी।

तब लक्ष्मी ने कोमल स्वर से कहा—"श्रीवत्स! कोई चिन्ता न करना। मैं तुम्हारे जीवन में सदा साथ रहूँगी। सुख में, दुःख में और कर्त्तव्य में, ध्यान को स्थिर रखना। फिर तो अशान्ति तुम्हारा बाल भी बाँका न कर पावेगी।" फिर उन्होंने प्रेम से रानी चिन्ता की ठुड्डी पर हाथ रखकर कहा—बेटी! तुम धन्य हो। आशीर्वाद देती हूँ कि तुम्हारा व्रत पूरा हो। स्वामी के जीवन को मङ्गल के रास्ते ले जाने में तुम्हारे उपाय सफल हों। आज तुम लोगों ने मुझे प्रीति के जिस बन्धन में बाँधा है वह किसी तरह नहीं टूटेगा।

चिन्ता ने कहा—माता! विपदाओं से भरी पृथिवी पर मनुष्य माया-मोह के भँवर में गोते खाया करते हैं। इसमें कोई सहाय है तो वह देवताओं का पवित्र आशीर्वाद है। माँ! आशीर्वाद दो कि हम देवता के चरणों में विश्वास रखकर चल सकें। सुख या दुःख तो कुछ भी नहीं है। वह केवल समझ का फेर है। ऐसा आशीर्वाद दो कि सुख से प्राण न तो फूल ही उठे और न दुःख से गड़बड़ हो जाय। यही प्रार्थना है कि संसार-सागर में दुर्दशा का अन्धकार जब रास्ता भुलाने को आवे तब तुम्हारे पवित्र चरण, ध्रुव-तारे की तरह, हम लोगों को रास्ता दिखावें।

"बेटी चिन्ता! वत्स श्रीवत्स! शोक छोड़ो। कर्मभूमि में कर्म की साधना ही बड़प्पन पाने का सबसे बढ़िया उपाय है। यही तुम लोगों के जीवन का मूल-मंत्र हो।" यह कहकर लक्ष्मी एकाएक गुप्त हो गईं।

लक्ष्मी और शनि के चले जाने पर राज-सभा में कुछ देर के लिए