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आख्यान]
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सीता

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सीता देवी ने यथासमय एक साथ दो पुत्रों को उत्पन्न किया। महर्षि वाल्मीकि ने जातकर्म करके उनका लव और कुश नाम रक्खा। सीताजी उन कुसुम-समान कोमल दो बेटों के मुख को देखकर सब दुख भूल गईं। वाल्मीकि का वह शान्त स्निग्ध तपोवन इन लीला-चञ्चल दो बालकों के हास्य से गूँजने लगा। राजवधू सीता तपस्विनी के वेश में दोनों राजकुमारों का पालन करने लगीं।

महर्षि वाल्मीकि ने रामचन्द्र के महान् चरित के आधार पर रामायण नाम का एक महाकाव्य बनाया था। जब लव-कुश कुछ बड़े हुए तब महर्षि ने उनको रामायण गाना सिखाया। दोनों कुमार वीणा के सुर में सुर मिलाकर रामायण गाने लगे। सीताजी दोनों पुत्रों के, वीणा को लजानेवाले, सुर में वाल्मीकि की बनाई हुई रचना को सुनकर पुलकित होतीं और अपने घर के इतिहास तथा इक्ष्वाकु-वंश की गौरव कीर्ति को दोनों कुमारों के मुख से सुनकर आँसुओं की धारा बहातीं।

इधर रामचन्द्र ने अश्वमेध यज्ञ की तैयारी की। उस यज्ञ में शिष्यों-सहित उपस्थित होने का निमंत्रण पाकर महर्षि ने सीता देवी से कहा—"बेटी! रामचन्द्र ने अश्वमेध यज्ञ में मुझे न्यौता दिया है। मैं चाहता हूँ कि तुम्हारे दोनों लड़कों को वहाँ ले जाऊँ।" सीताजी ने कहा—इसके लिए मुझसे पूछने की क्या आवश्यकता है? आप खुशी से उनको ले जा सकते हैं।

सीताजी रामचन्द्र के अश्वमेध यज्ञ के समाचार से, एक बात सोचकर, विशेष चिन्तित हुईं। यह उनकी नई चिन्ता थी। सौभाग्यवती को अश्वमेध यज्ञ का समाचार पाकर बड़ा खेद हुआ। मायके में स्वामी की सेवा के विषय में शास्त्र की कितनी ही बातें सुनने से वे जानती थीं कि—"सस्त्रीको धर्ममाचरेत्"—धर्मकार्य स्त्री के साथ