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आख्यान]
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सीता

रामायण गाना। अगर राजा कौतूहल में आकर तुम लोगों को बुलावें तो विनय-पूर्वक जाना; परन्तु पुरस्कार का लोभ मत करना। अगर राजा कुछ पुरस्कार दें तो कहना कि महाराज! हम लोग ऋषि-कुमार हैं, हम लोगों को धन से कुछ काम नहीं। परिचय चाहें तो कहना कि हम लोग वाल्मीकि के शिष्य हैं।

गुरु से यह उपदेश पाकर दोनों कुमार उपस्थित राजाओं के तम्बुओं के सामने वीणा बजा-बजाकर और मन लगाकर रामायण गाने लगे। उपस्थित राजा लोग कुमारों के शरीर में राज-लक्षण देखकर विस्मित हुए।

धीरे-धीरे यह समाचार राजा रामचन्द्र के कानों तक पहुँचा। उन्होंने एक ब्राह्मण के द्वारा उन दोनों को बुलाया। दोनों कुमार राजा का बुलाना सुनकर विनय-सहित सभा में गये और चित्त लगा कर वीणा के सुर में सुर मिलाकर सीता-राम का प्रेम-विषयक अंश गाने लगे। उसे सुनकर राजा रामचन्द्र का शोक-प्रवाह उमड़ आया। इधर परदे से राजमाता कौशल्या देवी दोनों कुमारों का रूपलावण्य देख कर उल्लास-भाव से पुकार उठीं—लक्ष्मण! ये दोनों बालक तो मेरे राम के वंशधर हैं। यह देखा, मेरे राम और सीता के सब अङ-लक्षण इनके शरीर में दिखाई देते हैं, तुरन्त इनको यहाँ ले आओ।

राजमाता के आदेश से लक्ष्मण तुरन्त दोनों कुमारों को महल में ले गये।

कौशल्या ने, डबडबाई हुई आँखों से, दोनों कुमारों का परिचय पूछा तो उन्होंने विनय-पूर्वक कहा—"हम वाल्मीकि के शिष्य हैं।" राजमहल में जितनी स्त्रियाँ थीं वे सब बोल उठीं—अवश्य ही ये बालक सीता देवी के पेट से जनमे हुए हैं।