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[दूसरा
आदर्श महिला

इच्छा है कि आप सन्तान की कामना से तपस्या प्रारम्भ करें। विधाता की कृपा से आपके सन्तान होगी। मुनियों की बात सुनकर राजा के हताश हृदय में आशा की स्वर्ण-किरण झलक गई। उन्होंने हर्ष से कहा—मुनिगण! बताइए, सन्तान की कामना से मैं किस देवता की उपासना करूँ? राज्य का मङ्गल, और वंश का गौरव बढ़ाने के लिए मैं कृच्छ साधना से भी मुँह न माड़ूँगा।

मुनियों ने एक-स्वर से सावित्री देवी की उपासना करने को कहा।

राजा को मुनियों की बात पर बड़ा विश्वास था। इसलिए उन्होंने उस आदेश-वाक्य पर विश्वास प्रकट करके सभासदों को लक्ष्य करते हुए कहा-"तपस्या बड़ी कठिन चीज़ है, भीषण भविष्यत् के साथ युद्ध है। इसलिए वह संसार के शोर-गुल में, ठीक-ठीक, नहीं हो सकती। मैं चाहता हूँ कि तपस्या करने के लिए वन को जाऊँ। आशा है, इस विषय में आप लोग सम्मति देंगे!" सभासदों ने कहा—हम लोग आपका आदेश मानकर चलेंगे। आप खुशी से वन जाइए। हम लोग जी-जान से आपका आदेश पालने की प्रतिज्ञा करते हैं?

राजा तपस्या करने वन में जायँगे, यह सुनकर मद्र-देश की प्रजा राजा के वियोग का स्मरण करती हुई बहुत दुखी हुई। किन्तु उन लोगों का जी राजा के निःसन्तान होने से बहुत उदास था। इससे, यह सुनकर कि राजा की तपस्या का मुख्य कारण सन्तान पाना ही है और इसी लिए वे वन जाते हैं, प्रजा को ढाढ़स हुआ और सबने सान्त्वना के अञ्चल से आँसू पोंछकर राजा को बिदा किया।

[२]

वन में जाकर राजा अश्वपति ने गहरी तपस्या में मन लगाया। अश्वपति की तपस्या देखकर देवताओं को शङ्का हुई।