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[ आख्यान ]
[ ६५ ]
सावित्री


 उपवास से मुझे कुछ कष्ट नहीं होता। मैं भली रहती हूँ। इससे 
मेराशरीर चंगा रहता है।
 रानी ने मन्दिर से आई हुई बेटी के, होम-तिलक लगे हुए, 
ललाट का पसीना पोंछकर मीठे स्वर में कहा-"बेटी! व्रत करने 
के कारण दिन भर उपवास करती हो, चलो कुछ खा लो।" बेटी 
को रानी अपने कमरे में ले गई।
 राजा अश्वपति बेटी की बात सोचने लगे। ऐसी रूप-गुणवाली
लड़की के योग्य वर कहाँ मिलेगा, इसकी उन्हें बड़ी चिन्ता हुई।
क्षण-क्षण में वे इसी फ़िक्र में रहने लगे।
 दूसरे दिन सबेरे दरबार में जाकर राजा ने मुसाहबों से कहा-
सावित्री का शीघ्र ही विवाह करना है। आप लोग उसके लायक
वर ढूंढ़िए।
 मुसाहबों का मुख प्रसन्न हो गया। उन्होंने विनय-पूर्वक निवे-
दन किया-महाराज! आज्ञा हो तो भाट भेजने की व्यवस्था
की जाय।
 बहुतसे भाट सावित्री के विवाह का प्रस्ताव लेकर अनेक देशों
में-अनेक राज्यों में-गये । अनुपम सुन्दरी सावित्री के विवाह की
बात सुनकर कितने ही राजकुमार भी मद्र देश में आये। किन्तु वे
सब सावित्री के चेहरे पर एक दिव्य ज्योति देखकर आदर से 
सिर नीचा करके लौट गये।
 राजा अश्वपति सावित्री के योग्य वर का मिलना कठिन देखकर
भारी चिन्ता में पड़े। उन्होंने एक दिन रानी को बुलाकर कहा-
रानी ! मैंने बहुत उपाय किये परन्तु सावित्री के लायक वर नहीं
मिला। अब क्या करना चाहिए ?
 रानी ने कहा-महाराज ! यह तो बड़ी चिन्ता की बात है।
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