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[दूसरा
आदर्श महिला

ठीक नहीं कर सकीं तब हमारा पूरा विश्वास है कि जिस सौभाग्यवान् पुरुष को विधाता ने तुम्हारा स्वामी चुन रक्खा है वह अवश्य ही तुम्हारी पवित्र पुकार की बाट देख रहा है। बेटी! भौंरा और किसी के बुलाने से नहीं आता। खिला हुआ फूल सुगन्धि से सने हुए स्वर से ज्योंही उसे पुकारता है त्योंही वह वहाँ पहुँच जाता है। तुम्हारा वह पुरुष-रत्न स्वामी तुम्हारी ही मधुर पुकार की बाट देख रहा है। मैं आशा करती हूँ कि अब तुम हमारी बात समझ गई हो। बेटी! यह कोई नई बात नहीं है। इस प्रकार, पति को चुन लेना सदा की चाल है। पतिव्रताओं में श्रेष्ठ सती ने हिमालय-गृह में तप के प्रभाव से कैलासनाथ महादेव को बुला लिया था।

सावित्री चुप हो रही।

राजा ने प्रेम-पूर्ण स्वर से कहा—बेटी! इसमें कुछ डर की बात नहीं है। हमारी प्रजा सुशासित है और सामन्त राजाओं से मित्रता है। तुम्हारे साथ हमारे मंत्री, तुम्हारी प्यारी सहेलियाँ और दास-दासियाँ तथा सैकड़ों सिपाही जायँगे। बेटी! घबड़ाना मत। मैं बिना विलम्ब तुम्हारे जाने के लिए सवारी आदि का प्रबन्ध किये देता हूँ।

यह कहकर राजा दूसरे कमरे में चले गये।

तब सावित्री ने माता से कहा—मा! मैं आप लोगों की सब बातें समझ गईं। किन्तु संसार क्या इतना भयानक है कि यहाँ स्त्री पुरुष से और पुरुष स्त्री से मिले बिना नहीं रह सकता? मैं जितने दिन जीऊँगी उतने दिन तुम लोगों के पवित्र चरणों की सेवा करके ही धन्य हूँगी। मा! मुझे परित्याग करके तुम लोग कैसे रहोगी और मैं भी कैसे रहूँगी?

रानी ने बेटी की बालकों की जैसी सरल बात सुनकर कहा—