हुए उन्होंने सोचा कि सावित्री का शुभ विवाह हो जाने पर सत्यवान की दशा अवश्य बदल जायगी। प्रकाश निकलने पर अँधेरा भाग ही जाता है। सूखी तपी हुई पृथ्वी पर वर्षा की धारा से हरियाली छा जाती है। सौभाग्य-लक्ष्मी के आगमन से सत्यवान के घर में उजेला हो जायगा; उसकी दरिद्रता दूर हो जायगी।
राजा इस प्रकार सोच-विचार कर रहे थे और मुसाहिब लोग सावित्री के पति ढूँढ़ लेने की आपस में चर्चा कर रहे थे, इतने में देवर्षि नारद दरबार में आये। राजा ने आसन से उठकर बड़े आदर से उनको सिंहासन पर बिठाया। कुशल-प्रश्न हो लेने और स्वागत के बाद राजा अश्वपति ने देवर्षि नारद से सावित्री के पति चुनने की बात कही। नारद ने बड़ी प्रसन्नता से सत्यवान के कुल और शील की प्रशंसा करते हुए कहा—"राजन्! सत्यवान सब प्रकार से सावित्री के योग्य स्वामी है, इसमें सन्देह नहीं; किन्तु मैं इसमें बड़ा अमंगल देखता हूँ। राजा ने चौंककर पूछा—"देवर्षि! आप इसमें क्या अमंगल देखते हैं?" देवर्षि ने कहा—महाराज! सत्यवान की उम्र बहुत थोड़ी है। आज के ठीक बरसवें दिन सत्यवान काल के गाल में चला जायगा।
राजा बहुत व्याकुल हुए। मंत्री के और सभासदों के मुखमण्डल पर मानो खेद की कालिमा छा गई। राजा ने कहा—"देवर्षि! अब इसका क्या उपाय है?" देवर्षि ने कहा—"और उपाय क्या है? सावित्री को दूसरे पुरुष से ब्याह दीजिए।" इस विषय में मुसाहिबों के बीच अनेक प्रकार की उलटी-सीधी चर्चा हुई।
इतने में दरबार से महल में जाने के दरवाजे पर नूपुर की ध्वनि सुन पड़ी। राजा ने देखा कि वहाँ सावित्री आ रही है।
सावित्री ने दरबार में आकर सबसे पहले अग्नि के समान तेजस्वी मुनिवर को प्रणाम किया; फिर पिता के चरण छूकर मंत्री और