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८०
दूसरा
आदर्श महिला

मुसाहिबों को अभिवादन किया। राजा ने बड़े आदर से बेटी को। निकट बिठाकर मन्द स्वर से कहा—"बेटी! रास्ते में थकावट तो नहीं मालूम हुई?" सावित्री ने कहा—"नहीं बाबूजी! मैं बड़े आराम से थी। मंत्रीजी के आदर से, दाई के यत्न से, और दास-दासियाँ मनलायक होने से मुझे कुछ कष्ट नहीं हुआ। नित्य नये-नये स्थानों की सहज शोभा देखकर मैंने अपने को कृतार्थ किया है; किन्तु बाबूजी! बीच-बीच में आप लोगों के लिए मेरा जी उचट जाता था। राजा ने गद्‌गद स्वर से कहा—बेटी! मैं भी तुम्हारे अमंगल की कल्पना करके मन ही मन घबराता था।

सावित्री ने राजा की आँखों में आँसू और उनके चेहरे पर उदासी देखकर घबराहट से पूछा—"बाबूजी! आज आप ऐसे उदास क्यों हो रहे हैं? जब आप मुझे प्राण से भी बढ़कर प्यार करते हैं, और मुझे देखने से आपका सब दुःख दूर हो जाता है तब आप मुझे निकट देखकर भी क्यों आँसू ढाल रहे हैं?" राजा अश्वपति ने ज़रा सँभलकर कहा—बेटी, मेरी आँखों की पुतली! देवर्षि के मुँह से तुम्हारे भविष्य जीवन की भयानक बात सुनकर मेरा हृदय व्याकुल हो रहा है। मुझे चारों ओर अन्धकार दिखाई देता है।

राजा की इस खेद-भरी बात को सुनकर सावित्री गहरे सन्देह में पड़ गई। वह व्याकुल होकर बोली—बाबूजी! आपने देवर्षि के मुँह से मेरे भविष्य-जीवन की ऐसी कौनसी दुःखदायक बात सुनी है? बताइए। अगर इस समय उसके मेटने का कुछ उपाय हो तो उसके लिए उपाय कर सकती हूँ।" यह सुनकर राजा को कुछ ढाढ़स हुआ।

यह जानकर देवर्षि को भी कुछ विषाद सा हुआ कि 'सावित्री अपने भविष्य-जीवन की अवस्था बदलने का उपाय करेगी।' उनको आशङ्का हुई कि मैंने जिस कठिन परीक्षा के लिए आज वेदमाता