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आख्यान]
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सावित्री

देवी के अंश से उत्पन्न मद्र-नरेश की बेटी के भविष्य-जीवन का भयानक चित्र दिखाया है उस परीक्षा में पिता के कहने से, या अपने मतलब से, राजकुमारी कहीं फिसल न जाय। देवर्षि बड़ी उत्कण्ठा से बैठे रहे।

राजा ने कहा—बेटी! सब प्रकार से बड़ों का मान रखना ही बेटे और बेटी को उचित है। तुम मेरी सुशील बेटी हो। आशा है, मेरी बात को अच्छी तरह समझकर तुम उसके अनुसार काम करोगी। तुमने वशिष्ठाश्रम में शाल्वराज द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को देखा है। सत्यवान रूप, गुण, कुल और शील में यद्यपि तुम्हारे योग्य है तथापि एक दोष से सब अनर्थ हो गया। मिलन के पास ही अशुभ की छाया है।

सावित्री ने विनीत स्वर से पूछा—बाबूजी! आप इसमें क्या अशुभ देखते हैं?

राजा—बेटी! देवर्षि कहते हैं कि सत्यवान आदर्श पुरुष होने पर भी अल्पायु है-सत्यवान की आयु आज से ठीक एक वर्ष भर की है।

यह सुनकर सावित्री का कलेजा काँप गया। उसका चेहरा उतर गया। यह सोचकर सावित्री और भी व्याकुल हुई कि मेरे ही इस अमङ्गलमय भविष्य चित्र को देखकर राजा व्याकुल हुए हैं।

विकट परीक्षा है। राजकुमारी का आज का कथन भविष्य में स्त्रियों के सामने सोने के अक्षरों के रूप में बना रहेगा। देवर्षि सोचने लगे कि वेद-माता सावित्री की वरपुत्री, यह मद्रराज की बेटी, किस तरह सतीधर्म को निबाहेगी, कैसे इस भयंकर परीक्षा में उत्तीर्ण होगी।

सावित्री देवी ने आगे होनेवाली स्त्रियों के लिए गौरव-जनक आदर्श रखने के लिए ही इस बालिका को उत्पन्न किया है। वह इस