पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१२२

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चाहती थी कि ये चोर कौन है? और उन्हें मार कूट कर चोरी में से मोरी करने, उनके पास से माल ताल छीन कर उनकी मुश्के कस लेनेशले कौन? इसीलिये प्राण भय होने पर भी यह थोड़ी देर तक वहाँ डटी रही किंतु जब वे लोग लाठी से आपस में लड़ते झगड़ते इसकी ओर बढ़ने लगे तब यह एकाएक डर के मारे काँप उठी। इसे भय हुआ कि "कहीं मुझे भी इन चारों की तरह नाँध ले जाँय तो? अथवा मैं किसी कह दूँगी इस शक से मुझे कोई मार ही डाले तो नाहक जान जाय।" इस तरह का भय पैदा होते ही यह भागी। भागते हुए इसने कई बार ठोंकरे खाईं, कई बार धरती पर गिरकर इसने दंडवत की। गिरने पड़ने से इसका शरीर छिल गया, जगह जगह खून निकल आया और ऐसे गिरती पड़ती जब रात के ग्यारह बजे अपने पिता के दर्वाजे पर पहुँची तब यह लगभग अधमरी सी होकर धड़ाम से धरती पर गिरकर बेहोश हो गई।

जब वह मूर्च्छित ही हो गई तब यदि वह पनाले के कीचड़ में गिरी तो क्या? और उसके मुँह को कुत्ते ने चाटा तो क्या? परंतु उस बेहोशी की दशा में जब जब इसे थोड़ा बहुत भी चेत हुआ तब तब इसकी माता ने इसके टूटे फूटे शब्दों को इकट्ठा कर के जो मतलब निकाला उसका भाव यह था―

"मैंने जैसा किया वैसा पा लिया। मैं जो अपने आदमी