पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१९

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दूर की कोई चीज दिखाती हुई-"है हैं! वह आगया! अब क्या होगा?"

"होगा क्या? कोई भूत है जो हमें खा जायगा? वह भी एक चट्टान है जो सायंकाल की झुरमुट में वृक्षों की आड़ से आदमी सी दिखलाई देती है। और यदि आदमी भी हो तो डर क्या है? क्या तू किसी और की गोदी में है जो इतनी शर्माती है?"

"आग लगे और को! भाड़ में जाय और? परंतु क्या ऐसी खुली जगह में तुम्हारे पास बैठ कर बातें करने में शोभा है? भले घर की भामिनी का अपने मालिक से भी समय पर आपने कमरे ही में बातचीत करना अच्छा है। ऐसे बीबी को बगल में दबाकर सैर करने में लाज ही है। मैं तुम्हारे झाँसे में आ गाई। बड़ी चूक हुई। अब कभी तुम्हारे साथ ऐसे हवा खाने नहीं आऊंगी।"

"न आवेगी तो यों ही घर में गलगल कर मर जायगी। शह आबू है। यहाँ परिश्रम करने और बाहर की हवा खाने ही से जीवन है, मेम साहबों को देख वे कैसे सुख से विचरती हैं।कुलवधू की लज्जा जैसी तुझमें है वैसी उनमें भी है किंतु देख बाहर की हवा खाने और परिश्रम करने से उनकी संतान कैसी दृष्ट पुष्ट और बलिष्ट होती है।"

"उनका सुख उन्हें ही मुवारिक रहे। हम पर्दे में रहने वालियों को ऐसा सुख नहीं चाहिए। हम अपने घर के वंदे ही