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प्रकरण―१८

प्रियंवदा से छेड़छाड़।

जिस समय सीटी देकर मथुरा स्टेशन से गाड़ी रवाना हुई "जमुना मैया की जय!" का गगनभेदी शब्द ट्रेन के हर एक दर्जे की खिड़कियों में से निकल निकल कर दिशा विदिशाओं में व्याप्त हो गया। उस गाड़ी में जो नास्तिक थे भिन्न धर्मी थे, आर्य्य समाजी थे, नेचरिये थे वे हिंदुओं को मूर्ख बतला हँसे भी किंतु "जो मनुष्य के हृदय में आँतरिक भक्ति है, उसके मन का भीतरी भाव है उसका इस तरह एक समुदाय में संयुक्त होकर प्रकाशित होना किसी समाज में, किसी देश में बुरा नहीं माना जाता। बुरा नहीं अच्छा है और "हिप् हिप्! हुर्रे!" से हजार दर्जे अच्छा है। जिन लोगों के हृदय में सच्ची भक्ति है वे ऐसे पवित्र शब्दों को श्रवण कर गद्गद होते हैं, जो मन के बोदे हैं उनकी भक्ति दृढ़ होती है और जो बिलकुल ही कोरे हैं उनके अंतःकरण में भक्ति का संचार होता है।" ऐसाही उत्तर देकर पंडित प्रियनाथ ने अपने साथी मुसाफिरों को शांत किया।

जिस समय तक मथुरा स्टेशन से गाड़ी रवाना न हुई हर एक दर्जे के मुसाफिर आपस में लड़ते रहे। कहीं गाली गलौज और कहीं धक्का धक्की तक की नौंबत आई। जो पहले

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