पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/२१२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( १९९ )

गुड़ खाकर जैसे उसका स्वाद बताने में असमर्थ है मैं भी वैसा ही आवाक् हूँ। परंतु क्यो भाई सरस्वती कहाँ है। वह गुप्त क्यों है?"

"वह गुप्त यों है कि वह भारतवासियों की मूर्खता से रूठ गई है। इधर ब्राह्मणों ने उसका पढ़ना छोड़ा और उधर उसने उनका त्याग किया! भारत की लक्ष्मी और सरस्वती का वैर है। विद्वान् से लक्ष्मी नाराज रहती है। एक बार उसने कह भी दिया था कि महर्षि अगस्त्य जी ब्राह्मण थे जो मेरे पिता समुद्र को तीन चुल्लू कर गए। मेरे पति परमेश्वर के लात मारने वाले भृगु जी भी ब्राह्मण थे, बालकपन से ही ब्राह्मण मेरी वैरिणी सरस्वती को धारण करते हैं और नित्य प्रति उमाकांत का पूजन करने के लिये ब्राह्मण मेरे गृह (कमल) को तोड़ते हैं, इस लिये मैंने खिन्न होकर ब्राह्मणों के गृह को सदा के लिये छोड़ दिया है। इस तरह लक्ष्मी के कोप से जब तक ब्राह्मण डरे नहीं तब तक सरस्वती उन पर प्रसन्न रही और वे ब्राह्मण भी बने रहे किंतु जब उसने कोप करके ब्राह्मणों को छोड़ा तब लक्ष्मी ने भी उन्हें ग्रहण न किया। बस ऐसे ही सरस्वती का लोप हो गया।"

"हाँ यह ठीक परंतु त्रिवेणी की एक वेणी किधर चली गई?"

"भैया, यहाँ तीन वेणियाँ थीं! एक गंगा और दूसरी यमुना प्रगट होकर बहती हैं! उनका प्रवाह हम संसारियों