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प्रकरण―२१

त्रिवेणी संगम।

त्रिवेणी संगम पर आकर सुस्ता लेने के बाद इस यात्रा पार्टी के लिये सब से पहला काम मुंडन करवाने का था। जंगी महाराज की आज्ञा होते ही पंडित के साथ सब लोग नाइयों के अड्डे पर जाने के लिये खड़े हुए। अड्डा नहीं― खाली बातों की खेती थी। गंगाजी की रेणुका में जब मुरई खीरे, ककड़ी, खरबूजे, तरबूज, बोते हैं―उनके इस काम से जैसे वहाँ भी भूमि हरी भरी हो जाया करती है वैसे ही इस जगह की धरती में काली माटी ओढ़ कर अपना गोरा गोरा मुँह इसलिये छिपा लिया कि जिससे किसी की नजर न लग जाय। वहाँ की अलौकिक शोभा सुंदरी के लिये यह काजल की रेखा थी अथवा प्रयाग बालक के लिये ढ़िठौना था। कोई सौ डेढ़ सौ नाई वहाँ बैठे बैठे अपने अपने उस्तरे पैनाते जाते थे और "यहाँ आओ सरकार! इधर!" की चिल्लाहट से कानों की चैलियाँ उड़ाए जाते थे। कोई किसी यात्री से अच्छी रकम पाने की आशा में उसके बाल अच्छी तरह मिगोता था तो कोई कुछ भीगे और कुछ भीगे यों ही अपना भोंथरा उस्तरा फेर कर उसे अलग करता था। कोई एक को अधमुड़ा छोड़ कर दूसरे को जा चिपटता था