पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/२५

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बटी होने की तेरी हाय हाय खोटी है। नाम मनुष्य के सुकार्यों से होता है। भगवान रामचंद्र का नाम उनके अलौकिक गुणों से है। राजा हरिश्चंद्र को उनके सत्यवादीपन से लोग जानते हैं। उनका लव कुश के और इनका रोहिताश्व के कारण से नहीं"।

"राजपुताने के आदमी कहते हैं कि "नाम या तो पूतडा अथवा भीतडां"।

"उनका कहना भी एक अंश में ठीक है। यह कहावत साधारण प्रादमियों के लिये नहीं, राजाओं के लिये है क्योंकि उन्हें राज्य करना है। हमारे पास न तो कोई राज्य है और न कोई खजाना"।

"और बुढ़ापे में सेवा कौन करेगा"।

"धन होगा तो हजार आदमी खुशामद करने वाले मिल जायेगे और कौड़ी न होगी तो कोई पूछेगा भी नहीं। आज कल दुनियाँ में बहुधा ऐसे कुपूत होने लगे हैं कि जिन से सुख के बदले दुःख होता है, जो नाना प्रकार के कुकर्म करके बड़ो का लाम डुबाते हैं"।

"उस दिन वह महात्मा―नहीं नहीं महात्मा का तो अब नाम भी लेना अच्छा नहीं। शायद वह ठग ही हो परंतु उस दिन चाचाजी तो कहते थे, आपसे ही कहते थे कि बेटे के हाथ से पिंडदान हुए विना आदमी की मोक्ष ही नहीं होती"।