पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/२५१

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गालियों का बदला गालियों से चुकाना चाहा तब उसने एक एक की दस दस सुनाईं। वह बोली―

"राँड डायन! तू ही मेरे बच्चे को खा गई। तेरे ही दुःख से मेरा बाप भाग गया और अब तू मुझे भी दुःख दे दे कर मारना चाहती है तो ले मैं खुद ही मरती हूँ। अब मुझे मार कर राजी होना। मैं मर जाऊँगी तब ही तू सुख की नींद सोवेगी।" यह कहते हुए ज्यों ही सुखदा उस पुड़िया को खोल कर अपने मुँह में डालने लगी अकस्मात् किसी आदमी ने अपने ब्रज से हाथों से इसे पकड़ा। वह एक हाथ से इसकी गर्दन और दूसरे हाथ से इसके दोनो हाथ पकड़ कर जकड़ते हुए कड़क कर बोला―

"ले राँड! तू मरना चाहती है तो मैं ही तेरा काम तमाम किए देता हूँ।"

"हैं हैं! मरी! मारो मत! मैं तुम्हारी गौ हूँ! हाथ जोड़ती हूँ। हा हा खाती हूँ। हाय रे मैं मरी। अजी मारो मत" कह कह कर, चिल्ला चिल्ला कर जब वह रोने लगी तब उस आने वाले ने उसका गला छोड़ कर और दवा हाथ में छीन कर अपनी जेब में डालते हुए मथुरा की अपने मालदार बूटों से खूद ही खबर ली। उसकी सहेली की तरह सुखदा को भी जब वह खूब पीट चुका तब उसने मथुरा को चोटी पकड़ कर घसी- टते घसीटरो घर की चौखट तक पहुँचाया और उसे सौगंद खिया कर छोड़ा कि अब इस घर में सुखदा के पास कभी