पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ३२ )

पर चढ़ाने के पक्षपाती हैं वेही उन्हें तलाक देकर दूसरा खसम कर लेने की सम्मति जब दे रहे हैं तब मानों जरासंघ के शरीर की तरह एक शरीर के कभी दो टुकड़े करते हैं और फिर कभी जोड़ने का मिथ्या उद्योग करते हैं किंतु इसका फल यही होता है, कि 'टूटे पीछे फिर जुड़े तो गाँठ गठीली होय'। और सो भी एक बार एक के साथ और दूसरी बार दूसरे के साथ। बस इस लिये वह जोड़ा नहीं, वह विवाह नहीं। वह एक ठेका है जो अमुक अमुक बातों पर किया जाता है और यदि संयोगवश, जैसा कि प्रायः होता रहता है, दोनों में से एक भी शर्त चूक गया तो बस एक को छोड़कर दूसरा और दूसरे को छोड़कर सीखरा, कुम्हार को हाँडी की तरह जन्म भर पति बदलौवल अथवा पत्निपरिवर्तन हुआ करे।

ये बातें सुंदरी को पसंद न थीं। वह चाहती थी कि प्रियंवदा अपने प्राणनाथ को, अपने हदयेश्वर को केवल एक ही जन्म में नहीं, जन्मजन्मांतर तक में अपना मालिक भाले और सदा ही उसकी दासी होकर रहे। स्त्री अवश्य ही पति की अर्द्धांगिनी है और वह ऐसी अर्द्धांगिनी नहीं है जो जरा सी बात पर चिढ़कर फौरन इस शरीर के दो टुकड़े कर डालने पर उतारू हो। एक आर जुड़ने बाद मर जाने पर भी यह संबंध नहीं छूटता है और मनुष्य ही क्या कर्मवश पशु पक्षी कीट पतंगादि किसी योनि में उन्हें जन्म लेना पड़े दोनों साथ बने रहते हैं। एक बिना दुसरा पल भी नहीं जी सकता है। उसके सिद्धांत का तत्त्व था