पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/४७

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कर दिया कि बड़े बड़े हलवाई भी, बड़े बड़े रसोइए भी जिसके आगे सिर झुकावें। वह कसीदा निकलने में, सीने पिरोने में होशियार। अपने कपड़े सीने में, पति के कपड़े तैयार करने में और बाल बच्चों की पोशाक बनाने में उससे कोई आकर सलाह पूछे। अवकाश पाकर अवश्य ही यह तुलसीकृत रामा- यण, महाभारत, रागरत्नाकर, ब्रजविलास, प्रेमसागर और भन बहलाव के लिये ऐसे उपन्यासों को जिनसे चित्त में विकार उत्पन्न न हों पढ़ा करती थी किंतु खोटे उपन्यासों को प्रथम तो उसका पति ही उसके पास आने नहीं देता था और जो कहीं भूल से वे आ भी जाँय तो वह उन्हें अपने कमरे में से निकाल कर बाहर फेंक देती थी। एकांत के समय भजन आदि के गान करने में वह निपुण थी। पति को प्रसन्न करने के लिये समय समय प्रेमरस, श्रृंगार रस के गीत गाना भी उसे सिखलाया गया था और ठीक ताल स्वर से, किंतु सो भी केवल कृष्णचरित्र के, जिनसे धर्म का धर्म और कर्म का कर्म दोनों हो। इतना होने पर भी आज कल की मूर्ख स्त्रियों की तरह विवाह शादियों में गालियाँ गाने से क्या सुनने तक से उसे घृणा थी। सुशीला ने "सतीचरित्र संग्रह" जैसी किताबों का संग्रह कर प्रियंवदा को पढ़ाया, इतिहासों से, पुराणों से और जनश्रुति से ऐसे ऐसे चरित्रों का संग्रह कर उन्हें अच्छी तरह उस के मन की पट्टी पर लिख दिया। स्त्री शिक्षा के लिये उसे "स्त्री सुवोधिनी" का क्रम पसंद था परंतु केवल