पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/४९

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तो क्या गाय, तोता और अन्यान्य पशु पक्षियों का भी जी न दुखाना, जो घर में अपने आश्रित होकर रहें उनकी जी जान से रक्षा करना, उनका पालन पोषण करना उसका परम धर्म था। सुशीला ने उसके अंतःकरण में अच्छी तरह ठसा दिया कि पति जिस कार्य से प्रसन्न रहे वही करना, उसके दुःख में दुःखी और सुख में सुखी रहना। मन में हजार दुःख हो किंतु ऐसे अवसर पर पति से कभी न कहना जिससे उसके चित्त को धक्का पहुँचे। कोई काम पति का अप्रिय न करना, जो कुछ अपराध बन जाय तो पति से छिपाना नहीं, यहाँ तक कि सब बातों की रिपोर्ट पति से कर देना। यदि घर में खर्च की तंगी हो, घर में नमक न हो तो भी खाने के समय, आराम के समय कभी तकाजा न करना। कपड़े के लिये, जेवर के लिये पति को कभी तंग न करना बल्कि उसकी इच्छा पर छोड़ देना ताकि वह स्वयं खटक रखकर बनवाए। उनकी इच्छा ही को अपनी इच्छा समझना।

वस यही प्रियंवदा की शिक्षा का दिग्दर्शन है। लड़की गरीब माँ बाप की थी। कुंकुम और कन्या के सिवाय लड़की के पिता से एक पाई भी मिलने की आशा न थी। बड़े बड़े लखपत्तियों के यहाँ से सगाइयाँ भी दो चार आई थीं और उनसे रुपया भी दहेज में बहुत मिलने की संभावना थी किंतु प्रियानाथ के पिता रमानाथ के अंतःकरण में प्रियंवदा के गुण खूब ही खुप गए थे। लोगों के हज़ार लालच देने पर