पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/१०७

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"क्यों, बढ़कर कैसे? वाल्मीकिजी से भी बढ़कर?"

"हाँ! एक अंश में बढ़कर!"

"आजकल की हिंदू दुनिया का जितना उपकार तुलसी- कृत रामायण से हो रहा है उतना और किसी से नहीं। अँग- रेज इसकी दिन दिन बिक्री बढ़ती देखकर ठीक कहते हैं कि यह हिंदुओं की बाइबिल है। केवल अक्षरों का अभ्यास करके "टेंपे टेंपे" खाँच लेनेवाले को भी इसमें आनंद है और धुरंधर विद्वानों को भी। वास्तव में बादशाह अकबर का जमाना हिंदुओं के लिये इस अंश में सतयुगी शताब्दि था जिसमें महात्मा तुलसीदासजी जैसे अनन्य भक्त पैदा हुए।"

"हाँ! यह आपका कहना ठीक है। गासाई जी कवि भी अच्छे थे और भक्त भी थे, परंतु वाल्मीकिजी से कैसे बढ़ निकले?"

"गौड़बोले महाशय, आप दाक्षिणात्य हैं। आप इसके मर्म को नहीं समझ सकते, क्योकि हिंदी आपकी मातृभाषा नहीं। सुनिए, यद्यपि वाल्मीकि रामायण में यह अच्छी तरह निरूपण किया गया है कि रामचंद्रजी भगवान् का अवतार थे किंतु उसमें भक्ति नहीं है। वह एक इतिहास है और इसके अक्षर अक्षर से भक्तिरस टपका पड़ता है, उसका प्रवाह होता है। वह संस्कृत में है, और संस्कृत का पढ़ना लोहे के चने चबाना है। सर्व साधारण को तो पेट के धंधे के मारे संस्कृत पढ़ने की फुरसत ही नहीं और जो पढ़े लिखे कहलाते भी है