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प्रकरण--३९
काशी की भलाई और बुराई

काशी भारतवर्ष में दस्ती कारीगरी का केंद्र है। लखनऊ और दिल्ली को छोड़कर हिंदुस्तान में कदाचित् ही ऐसा कोई नगर हो जो काशी की समता कर सके। यद्दपि वहाँ का बना माल वहाँ ही बहुतायत से बिकता है किंतु भारत के अन्य बाजारों में भी वह जहाँ तहाँ बिकता हुआ देखा जाता है, यहाँ तक कि काशी के माल का नफासत में, उत्तमदा में और कारीगरी में, देश भर में सिक्का है। काशीवाले समय के अनुसार इस काम में उन्नति भी करने लगे हैं किंतु एक काम की और अभी तक उनका ध्यान नहीं गया है। यदि वहाँ के व्यवसायी भारतवर्ष के बड़े बड़े नगरों में, विलायत तक में बनारसी माल बेचने के लिये दुकानें खोलें तो माल की माँग बढ़ सकती है, आढ़तियों के नफे से खरीदारों का बचाव हो सकता है और कारीगरों को उत्तेजना मिल सकती है। इतने दिनों के अनुभव से पंडित प्रियानाथ को यही निश्चय हुआ। इन्होंने यह बात अपनी नोटबुक में लिख ली क्योंकि कांता- नाथ अजमेर में जो कार्य आरंभ करना चाहते थे उसके लिये यह लाभदायक थी।