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इस सिद्धांत के अनुसार यहाँ मरने के लिये आते हैं, कोई व्यापार धंधे और नौकरी के लिए आते हैं और कोई विद्योपार्जन के लिये। काशीवासियों की तो कथा ही क्या? जब लोगों का विश्वास है और शास्त्रों के अनुसार विश्वास है कि काशी में आकर अथवा रहकर जा मरता वह फिर जन्म धारण नहीं करता, तो इसमें संदेह नहीं। प्राचीन काल में यह अक्षरश: सत्य था और अब भी इसमें मिथ्यात्व नहीं। हाँ अंतर इतना ही है कि जो यहाँ पर आकर अथवा रहकर सुकार्य में प्रवृत्त होते हैं उन्हें भगवान् शंकर जीवन्मुक्त करके कैलाश में ऊँचा आसन देते हैं और जो बुराई में घुस पड़ते हैं उन्हें मरने पर पिशाच योनि धारण करनी पड़ती है। वे भूत होते हैं, प्रेत होते हैं, नाना प्रकार की यातनाएँ भेगते हैं और फिर दोनों को सताकर पाप के गहरे से गहरे गढ़े में पड़ते हैं। देश के दुर्भाग्य से हमारी करनी से समय के अनुसार ये बातें थोड़ी और बहुत सर्वत्र है किंतु काशी ऐसा क्षेत्र है जहाँ से जैसे स्वर्ग एक सीढ़ी ऊँचा है वैसे ही नरक एक जीना नीचे को है। दोनों ही स्थान यहाँ पर स्वल्प साधन से प्राप्त हो सकते हैं।

बाहर से आकर यहाँ निवास करनेवाला यदि अपने द्रव्य से कालयापन करना चाहे तो उसका तो कहना ही क्या? किंतु भिक्षा से, मधुकारी से, अन्नसत्र में भोजन कर गंगा तीर पर पड़ रहना और दिन रात भगवान् के स्मरण में मन लगाना भी यहाँ अच्छा बन सकता है। केवल इसी के भरोसे यहाँ