पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/२१५

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कार है, फिर निराकार के निराकार में लय हो जाने में क्या आपत्ति हुई। यदि उनका फल भी पहुँचना न माना जाय तो आपके पूर्व पुरुषों को दस बीस गालियाँ दे देने दीजिए। आप स्वयं उछल पड़ेंगे। फिर जब गालियाँ पहुँचती हैं तब वेद मंत्रों से पवित्र किए हुए पदार्थों का फल क्यों नहीं पहुँ- चेगा? तीसरे जब साकार सूर्य भगवान् संसार को तपाकर जलीय पदार्थ को शोषण करते हैं, उस समय वह जल परमाणु रूप में निराकार ही बोध होता है किंतु फिर बादल बनकर वर्षा में जैसे साकार बन जाता है वैसे ही जन्तु और पिंडों का निराकार सार यदि पितरों के पास पहुँचकर सरकार बन जावे तो इसमें आपत्ति क्या है? चौथे हवन को तो आप भी मानते और हम भी मानते हैं। आपके और हमारे मानने में भेद अवश्य है। आप उस वायु शुद्ध करने के लिये करते हैं और हमारे हव्य का वही निराकार सार पवन को शुद्ध करता हुआ देवताओं को मिलता है। परंतु जब आपका होम केवल वायु को शुद्ध करनेवाला है तब आहुति आहुति पर वेद के मंत्रों का उच्चारण करने की क्या आवश्यकता है? वेदी बनाकर ढकोसला करने से क्या लाभ है? जब वायु का शुद्ध होना ही इसका फल है तब एक जगह आग जलाकर उसमें मन दो मन घृत, दो चार मन चंदन जला दीजिए और वेद मंत्रों के बदले यदि कबीर ही गाया जाय तो क्या हानि है? इसमें न त उन मंत्रों के देवताओं को अपना अपना