पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/२२८

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लिये कि सबके सामने पति से बातें करने में उसे लज्जा आती थी। परंतु हाँ! मन ही मन मुसकुराती रही। मन ही मन कहती रही कि "तब तो इस अंश में प्राणनाथ से भी मेरा दर्जा बढ़कर है।" उसके हृदय ने पति परमेश्वर को यह बात जतला भी देनी चाही किंतु आँखों की झेंप के सिवाय ओठों के कपाट वाक्य निकाल देने के लिये खुले नहीं। उनमें लाज का ताला पड़ गया और उसने फिर समय पाने पर विनोद के लिये पति को एक हलका सा ताना देने का ठहराव कर लिया।

ये उस समय की बातें हैं जब ये लोग जगदीशपुरी जाने के लिये गया स्टेशन पर बैठे हुए ट्रेन की राह देख रहे थे। वहां भी पुरी जाने के दो मार्ग हैं। एक कलकत्ता होकर और दुसरा बाला बाल । इनके साथियों में से कितनों ही की राय कलकत्ते होकर जाने की थी। उन्होंने कलकत्ते जैसे एक विशाल नगर की सैर और काली माई के दर्शन, बस ये दो लाभ बतलाए। एक गौड़बोले के छोड़कर सबकी राय इस ओर झुक गई। थेाड़े से खर्च के लिये पंडितजी किसी का मन मारनेवाले नहीं थे। वह यह भी अच्छी तरह जानते थे कि कलकत्ते जाने से जो अनुभव हो सकता है वह असाधारण है किंतु दो बातें उनके अंतःकरण में खटकीं। काली माई के दर्शन करते समय वही बलिदान का वीभत्स दृश्य आँखों के सामने आ जायगा। याद आते ही उनका हृदय दया से भर गया। उन्होंने कह दिया --"तंत्र शास्त्रों के मत