पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/५८

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न आवें तब तक तू इसमें हाथ भी न लगाना।" वह अब बहुत ही सजा पा चुकी थी और यह कष्ट उसके मन का भूत निकालकर उसकी अकल ठिकाने ले आया था इसलिये उसने ताली वापिस देकर कह दिया कि "मुझे इससे अब कुछ काम नहीं रहा आपकी जूँठन खाने को मिल जाय और आपकी चरण-सेवा, बस इनके सिवाय मुझे अब कुछ यहीं चाहिए।" वह अब यहाँ तक सँभल गई थी कि इनकी इच्छा न होने पर भी अपनी खुशी से घर के काम काज करती, इनकी आँख बचाकर जिस दिन इनकी धोती धेने के लिये मिल जाती अपने को कृतार्थ समझती। यहाँ आने पर भी, पिट जाने पर भी मथुरा ने जब इसका पीछा न छोड़ा तब तक दिन इससे स्वयं उसका हाथ पकड़कर उसे निकाल दिया।

चोरों को उनके अपराध के अनुसार सजा मिल गई सो लिखने की आवश्यकता नहीं। हाँ आवश्यकता हैं मथुरा के लिये कुछ लिखने की, सो समय अप बलला देगा।


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