पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/६५

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आठ सात औरतों को घेरकर आगे कर लिया और यों वे थाने की ओर रवाना हुए। बस कानों कान यह खबर बस्ती भर में फैल गई। एक भले घर की बहू बेटी का थाने में जाना सुनकर बस्ती में जो भले आदमी थे उनका माथा उनका किंतु जहाँ गाय है वहाँ ढेडवाड़ा भी होता है। बस्ती में पचास भले थे तो दो चार बुरे भी थे। बस जो बुरे थे ने तालियाँ पीटने लगे। किसी ने कहा -- "देवा की बहू के साथ सेवा ने किसी को देख लिया बस इसी की लड़ाई है।" और कोई बोला -- "किसी को क्या? मेवा को!" कोई कहने लगा -- "वह क्या आज से है? मुद्दत से।" और किसी ने कहा -- "वह तो अपने पीहर से ही बिगड़ चुकी है।" बस बात की बात में बात का बतंगड़ बनकर धूल हो गई। जो पनिहारियाँ थोड़ी देर पहले सेवा की बहू के साथ हमदर्दी करने में थीं वे ही अब नाक पर अँगुली रखकर इस घर की बदनामी करने लगीं, पानी पी पीकर कोसने लगीं और गीत जोड़ जोड़कर कवियों में अपने नाम लिखवाने लगीं।

बूढ़ा भगवानदास जानता था कि उसके लड़कों की अकल चरने गई है। उसे संदेह भी था कि ये आपस में कहीं लड़ न पड़ें। इसलिये वह सबको इकट्ठा करके अपने मित्र पन्ना के सिपुर्द कर गया था। इसमें संदेह नहीं कि यदि पन्ना गाँव में होता तो इतना झगड़ा ही न बढ़ने पाता। प्रथम तो वे लोग ही आपस में लड़ मरने के बदले पन्ना के पास पुकारू