पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/८३

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अवश्य ही पति के निकट खसककर आ बैठी। परंतु बातों में मग्न होकर पंडित जी कदाचित् इस समय अपने आपको भूल गए थे, इसलिये न तो उनका ही प्रियंवदा के भय का कारण जानने की ओर मन गया और न वही कह सकी कि "मेरे डर का कारण यही आदमी है जो मेरी ओर भूखे बाघ की तरह घूर रहा है।"

अस्तु! वह मनुष्य, जो इस समय लंबी लंबी जटा को अपने सिर पर लपेटे, बड़ी बड़ी दाढ़ी और मूछों से अपने मन का भाव छिपाए गेरूआ रंग के कपड़े से छिपा हुआ बैठा था, बोला --

"बाबा! दो बातें कहना भूल गए। मालूम होता है कि आज से पहले काशी में कभी नहीं आए! आए हाते तो अवश्य कहते!"

"अच्छा हम भूल गए तो आप ही याद दिला दीजिए। इतना उपकार आपकी ओर से ही सही!"

"बाबा! यहां की शोभा उस समय और भी दर्शनीय हो जाती है जब बुढ़वा मंगल के मेले पर गंगाजी नावों से ढ़क जाती हैं!"

"हाँ! उस समय जब काशी के कुपुत माता की छाती पर चढ़कर वेश्याओं का नाच कराने में कुकर्म करते हैं। नहीं चाहिए महाराज! हमें ऐसी शोभा नहीं चाहिए।"