पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१००

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जाते हैं, उनका हृदय कमल न झुलसा दिया जाता हो तो सचमुच संयोग जैसा मधुर पदार्थ भी सीठा है ।

इस उपन्यास के दीन मतिहीन लेखक में सामथ्र्य कहाँ जो गोस्वामी तुलसीदास जी की तरह, हजारों लाखों वर्ष बीत जाने पर भी पाठकों के, हृदय चक्षुओ के सहारे, इन घर्म चक्षुओं के सामने राम-भरत के प्रेम-सम्मिलन का हूबहू चित्र खड़ा कर है । वैसा नहीं, उसका शतांश भी नहीं ! हाँ यदि उसकी परछाहीं भी दिखाई देने लगे तो इस लेखक का सौभाग्य । सौभाग्य इसलिये कि इसमें उसकी योग्यता कुछ नहीं । यहि वह बहुत ही कोशिश करे तो उनके भावों की चारी कर सकता है। ऐसी चोरी थोड़ी और बहुत सब ही करते आए हैं और जब उन्होंने अपने भावे सर्व साधारण के उपकार के लिये खोलकर रख दिया है तब ऐसी नकल चोरी नहीं कहलाती । लेखकों की चोरी, डकैती भिन्न प्रकार की होती हैं ।

अस्तु ! प्रियानाथ और प्रियंवदा के समीप पहुँचते ही कतांनाथ और सुखदा ने उनके चरणों में सिर रख दिए । गठजोड़े से नहीं, क्योंकि शास्त्रीय कामों का संपादन करने के लिये पति के उत्तरीय का एक कोना स्त्री की साड़ी से बाँध दिया जाता है। दोनों का संबंध अलौकिक होने पर भी, दंपती के एक प्राण दो तन होने पर भी हृदय के गठजोड़े के समक्ष कपड़े का गठजोड़ा कोई चीज नहीं। केवल उसका अनुकरण हैं । बेशक आज इन दोनों का दोनों प्रकार का गठजोड़ा नहीं