पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/११४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(१०५)

वहाँ जीविका के हजार रस्ते हैं किंतु जिस देश की प्रजा नितांत दरिद्री हैं वहाँ जीविका के मार्ग खेलने से पहले भीख बंद ? बेशक इस यात्रा के अनुभव ने निश्चय कर दिया कि साधु समुदाय में यदि घुरहू जैसे अनेक नर-पिशाच हैं तो वरुण गुफावाले महात्मा जैसे सच्चे साधु भी कम नहीं हैं। यदि हिसाब लगाकर देखा जाय तो अधिकांश ऐसे निकलेंगे जो अन्न न मिलने से फकीर बन गए हैं अथवा इच्छा न होने पर भी भख मारकर उन्हें बनना पड़ा है। यदि अब भी भीख बंद करने के लिये कानून बनाकर कृतज्ञता के रयाली पुलाव मकाने की इच्छा रखनेवाले इसके बदले तीर्थ स्थानों में काशी और हरिद्वार, आपकेश के समान पत्र खोलने का उयोग करें, भिखारियों के समझाकर किसी न किसी प्रकार की उपजीविका में प्रवृत्त किया जाय ते आधे से अधिक निकल जांयेंगे | जो अंगहीन, शक्तिहीन, अपाहिज कोढ़ी हैं वे अलग निकल सकते हैं। उनकी रक्षा का स्वतंत्र प्रबंध किया जाय और तब जो निकम्मे, अकर्मण्य मशवा वास्तत्र में जिनका समाज पर बोझा है उनके लिये उचित रूप पर दबाव न डाल कर कानून का बोझा भी डाला जाय ते अनुचित नहीं। उनको कोई कार्य करने से पहले यह अवश्य सेाच लेना चाहिए कि वे उस देश के वकील बनने चले हैं जिसमें केवल एक ही फसल मारी जाने पर लाखों आदमी गवर्मेंट की कृपा के भरोसे अकालमोचन के काम पर टूट पड़ते हैं।