पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/११९

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बस इस भय भी उनकी वही दशा हुई। केवल उनकी ही क्यों साथ में गौड़बोले ही आज विह्वल हैं। उनकी आंखे पानी वहा रही हैं, उनके रोमांच हो रहे हैं और सचमुच वे माता के ध्यान में मग्न हैं । जब इन दोनों ने अपने आपे को संभाला तब सब के सब लाविज्ञा के दर्शनकर सीर्थगुरू पुष्कर के घाटों का निरीक्षण करते हुए मन ही मन प्रमुदित होते तांगों और इक्के में सवार होते हुए पुरुकरराज के प्रणाम करके वहाँ से बिदा हुए। यहां इतना लिखने की और आदश्यकता रह गई कि पुष्कर के भिखारी और जगह से भी दो हाथ बढ़कर हैं। वे यदि गाड़ी में सवार होते ही यात्रियों का पिंङ छोड़ देते हैं तो पुष्करवाले गाड़ी इक्के के आगे खड़े हो जाते हैं और जब तक पैसा नहीं पा लेते यात्रियों की सवारी के साथ सीख तक दौड़े जाते हैं । अस्तु ये लोग उनको दे दिलाकर उन दोनों साधु बालकों के साथ लिए हुए वहाँ से चल दिए और इनके अग्नि में पहुँचने तक कोई घटना ऐसी नहीं हुई जो यहाँ उल्लेख करने योग्य हो । हाँ ! जिस समय इनके आने की खबर मिली बस्ती के सैकड़ों नर नारी वाजे गाजे के साथ इन्हें लिवा ले गए और “आगए ! आगए !"की आनंद ध्वनि के साथ सब लोगों ने इनका स्वागत किया ।