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खाई मान कापाय वस्त्र पर कलंक लग गया । उसक आतिथ्य करा सचमुच साँप को दूध पिलाना था। इस दुष्ट में ऐसा घोर पाप करके संन्यासाश्रम से लोगों का विश्वास उठा दिया ।

"वह वास्तव में नृशंस है, कृशन्न है और धीर पापी हैं । उसने जिस हाँडी में खाया उसी में छेद करना चाहा । यदि साध्वी प्रियंबदा उसका पुत्रवत् पालन करके उसका मैला, कुचैला उठाने में घृणा करती तो वह विष्टर में लिपट लिपट कर अन जल बिना बिलबिला बिलबिलाकर तड़प तड़पकर का मर जाता किंतु उसको जब माता पर हाथ पसारते हुए लज्जा न आई तब यह अवश्य नीबातिनीच हैं, पशु पक्षियों में भी गया बात है । उसने स्वयं स्वीकार कर लिया कि--

“मेरी आँख प्रियंवदा पर बचपन से ही थी । जिएर समर वह जननी बनकर प्लेग की घोर पीड़ा के समय मेरा पुत्र की तरह पालन पोषन करती थी उस समय भी मैं उसे बुरी नजर से देखता था । दो एक बार मैंने अपनी पाप वासना तृप्त करने के लिये खेाटी चेष्टा से, खोटा प्रस्ताव करके उसे छोड़ा भी परंतु जब उसका रूख न देखा तव सन्निपातवाले रोगी की नाई वाही तवाही वककर उसका संदेह निवृत्त कर दिया। उसके ऐसे मातृभाव का बुरा बदला देकर दीन दुनिया से भ्रष्ट हो जानेवाला मैं हूं। वैसे ही रेल-पथ में एक बार

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