पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१३३

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उनका ऐसा प्रेम देखकर पंडित पंडिलयिन में कुछ हँसी भी होती हैं । उनकी सख्त ताकीद है कि कभी कोई काम' ऐसा न करो जिससे बालक चिड़चिड़ा हो जाय । खबरकार किसी ने डरने की, झूठ बोलने की और इस तरह की बुरी आदत डाली तो । रात को यदि उन्हें पैशाब पायखाने की बाधा हुई हो रो रोकर माता को जगा देंगे परंतु कपड़े बिग़ाड़ने का वास्ता नहीं । मैले कुचैले से उन्हें बचपन से ही घृणा है । दोनों बच्चे ज्यो ज्यो बड़े होते जाते हैं त्यो त्यो शक्ति के अनुसार शारीरिक परिश्रम की उनमें आदत डाली जाती है। अब वे खूब दौड़ धूप करते हैं, बर्जिश करते हैं, गेंद बल्ले खेलते हैं और धीरे धीर बलिष्ट,हृष्ट पुष्ट और सदाचारी, माता पिता के भक्त बनते जाते हैं। शिष्टों का सत्कार, समान से प्रेम और छोटों पर दया उन्हें सिखलाई जाती है । नित्य प्रातःस्मरण करना, परमेश्वर की भक्ति करना उनके कोमल अंत:करण में ठेठ से ही अंकित कर दिया गया है। जब से उनका उववीत हो गया है ।स्नान संध्या उनका प्रधान कर्तव्य है। उनकी मजाल नहीं जो इन कामों में अतिकाल कर दें। पंडित जी को मारने 'पीटने से पूरी घृणा है इसलिये कोई उन पर हाथ नहीं उठाने पाता परंतु इसका यह मतलब नहीं कि वे दुलार में आकर बिगड़ जायें । शिष्टों का नाराज होना ही उनके लिये भारी भय है । उनकी शिक्षा दीक्षा का कार्य गौड़बोले के सिपुर्द है ।पंडित जी ने उनका हिदायत कर दी है कि आवश्यकता और