पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१५७

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नहीं था, जो नहीं जानता कि बुखार किसे कहते हैं वह इस मेहनत से थककर वीमर रहने लगा। इसकी बीमारी बढ़ते ही फिर वही गदर । अब इसने समझ लिया कि मित्र की सलाह के अनुसार इन लोगों के हिस्से किए बिना मेरी आँख के सामने ही ये लोग "जूतन फाग" खेलेंगे । इसलिये उसने सबको इकट्ठा करके जो कुछ माल ताल जमीन जायदाद रूपया पैसा बचा बचाया था वह पाई पाई बराबर बाँटकर झगड़ा भेट दिया ।

यो घर के धंधे से निपटकर वह यद्यपि उनसे उदासीन हो गया किंतु उन्होंने भी अब इसको निरर्थक, रद्दी समझ लिया । “बूढ़ा मर जाय तो अच्छा ! अब यह कांटा ही है। इसके खर्च का वृथा ही बोझा है।" वे खुला खुली कहने लगे । बूढे बुढ़िया को यदि ज्वर' पीड़ा से कोई कराहते देखता है तो उसकी और से आंख बचाकर चला जाता है। सवेरे किसी ने रूखी सूखी रोटिया पहुँचा दी से पहुँचा दी और भूल गए तो भूल गए। किसी का कर्ज थोड़े ही चुकाना है ? अब उनके पास फटे कपड़े और टूटी चारपाई के सिवाय कुछ नहीं है । एक लोटा केवल और है जिसमें सत्रह पैबंद लगे हैं। परंतु उसे इस बात का ज नहीं है। माँ वाप यदि बेटे बेटी पर बहुत से बहुत नाराज हो जायें तो इतनी गाली दे सकते हैं कि जैसे तुम हमें बुढ़ापे में सताते हो वैसे ही तुम्हारे बेटे पोते तुमको सतावें । किंतु इस गाली में भी आशीर्वाह है । वह "जाह विधि राखे राम, ताही विधि