पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१८६

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"हां ! मैं जानता हूँ कि आपको इन बातों की कसम है लेकिन दस हजार है । एकदम इतनी रकम देनेवाला कोई नहीं मिलेगा और इस पर मेरी जिम्मेवारी है कि फरिश्तों को भी इस बात की खबर न हो । आप मुझे जानते ही हैं। मैं सिर कटने तक अपनी जवान की पाबंद हैं। बस भरोसा रखिए और मंजूर कीजिए ।"

"बेशक आपका कहना ठीक हो सकता है परंतु जैसे इतनी रकम का देनेवाला कोई नहीं मिलेगा वैसे ही दस हजार रुपए पर पेशाब करनेवाला भी आपको नहीं मिलेगा । अभी इनको लेकर तशरीफ ले जाइए और आयंदा इन कामों के लिये मुझे मुंह न दिखलाइए ।" बस पंडित जी के मुँह से ऐसे दृढ़ किंतु कठोर वाक्य निकलते ही वह झटपट अशर्फियों के दुपट्टे में बाँधकर गालियाँ देता हुआ लज्जाकर वहाँ से चल दिया । उनकी ईमानदारी के के कोंड़ियां नमूनों में से एक यहाँ लिख दिया गया। हंडे के एक चावल को मसकने से सबकी जब परख हो जाती है तब अधिक लिखने की आवश्यकता नहीं !

यों पंडित जी केवल निलोभ हो सो ही नहीं। कितने है पराए पैसे से घृणा करनेवाले लँगोट के कच्चे निकल आते हैं । परंतु जैसे प्रियंवदा का दृढ़ प्रतिव्रत उदाहरणीय या वैसे ही यह भी "पर तिय समान " की प्रतिमूर्ति थे। इस नौकरी में इनके केवल रूपया दिखाकर ललचानेवाले मिले हो तो खैर परंतु अच्छी रूपवती युवतियों से एकांत में

आ० हिं०---१२