पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१८७

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मिलने का इनके लिये अवसर आया । परंतु मजाल क्या जो यह उनकी ओर आंखें उठाकर तो देख लें। इन्होंने माता या भगिनी का संवोधन करके उनको भेपाया, उनसे गालिय खाई और इतने पर भी वे वहाँ से न डिगी तो या तो स्वयं ही वहां से सटक गए अथवा किसी नौकर चाकर को बुलाकर अपने सिर की वला टाल दी। अवश्य ये ऐसी युवतिया हांगी जो लगभग या पुरी बिगड़ चुकी हो क्योंकि व्यभिचारणी स्त्री भी कभी अपनी और से प्रस्ताव नहीं कर सकती है। इसलिए प्यारे पाठक यदि इन्हें, "विपत्ति की कसौटि" की भुलिया भालें ले तो उनका दोष नहीं किंतु नहीं जब इनकी रूप ही भगवान् ने ऐसा दिया था जिसे स्वभाव ही से एक युवती का इनकी ओर मन आकर्षित हो, इन्हें देखते ही उनके हाथ पैर ढीले पड़ जायँ, इनकी मूरत ही कामदेव को जगा देने के लिये मोहनी मंत्र हो तब केवल इतने ही पर इस बात की इतिश्री न कर देनी चाहिए। इसके नमूने के लिये दो चार उदाहरण लिखे जा सकते हैं। परंतु इस काम के लिये कम से कम दो चार प्रकरण चाहिएं और यह पोथी बढ़ते बढ़ते पहले ही पोथा बन चुकी हैं इसलिये उन बातों की कल्पना करने का भार पाठकों पर है ।

पंडित जी में जैसे इस प्रकार के अनेक गुण थे वैसे ही साम्राज्य के, राज्य के, मालिक के और प्रजा के शुभचिंतक भी वह एक ही थे । "नमक का हक अदा करना" उनका दृढ़