पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१९७

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दिवाले भी बहुत निकलते हैं। देशी व्यापार और देशी कारीगरी की उन्नति के लिये ही बैंक में जमा और वही काम तुम करना चाहते हो । बस इसलिए तुमको रुपया उधार नहीं लेना पड़ेगा । ््््््््््््््््््््््््स्््््््््् बस भाभी सेठ और देवर गुमाश्ता ! उससे पूछ लेना ।"

"हां!क्या मैं सेठ ? ( दोनों के बीच से बात काटकर ) क्या वह रूपया अभी तक बैंक में ही जमा है ? मैं तो भूल ही गई थी। पर मुझसे पूछने की क्या आवश्यकता आ पड़ी ? मेरा उससे कुछ बास्ता नहीं है । मैं कुछ नहीं जानती । आपके मन में आवे सो करो । मेरा वास्ता तो आपके चरणारविदों से है। मुझे रूपयों से क्या मतलब ?" प्रियवंदा के मुख से इतने वाक्य निकलने पर पंडित जी “बेशक ऐसा ही हैं और होना भी चाहिए किंतु वह स्त्री धन है, तेरे नाना कर दिया हुआ है इसलिये तेरी राय ले लेना आवश्यक था और जब तू घर में ( कुछ मुसकुरकर ) बड़ी बूढ़ी है तब घर के कामों में भी तुझसे सलाह ली जाय तो अच्छा ही है ।" कहकर चुप हो गए और "हाँ ! हाँ !! भाभी सेठ और मैं गुमाश्ता ! इस धंधे की सब बातें तुमसे पूछ पूछकर करूंगा ।" कहते हुए कांतानाथ ने भाई साहब की बात का अनुमोदन किया । “बेशक मेरी भी राय है ।" कहते कहते प्रियंवदा का मुँह दोनों बालकों ने आकर पकड़ लिया । “अम्मा दूध ! अम्मा चीनी ! अम्मा मिठाई !" की रट लगाकर अम्मा को वहाँ से