पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/३२

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उनका दोष भी नहीं है । दर्शकों के मन का भाव भी बिगड़े तो विगड़ सकता है। मैंने इस विषय में पुरी का माहात्म्य देखा तो उसमें कहीं इस बात का उल्लेख उहीं । यहाँ के पंडितों से पूछा तो केवल एक के सिवाय सबने योही आय बाँय शांय उत्तर दिया । कोई कहते हैं कि यह मंदिर बैद्धिों का बनाया हुआ है पर तु अश्लील मूर्तियां की उनमें बिलकुल चाल नहीं । जैन मंदिरों में अवश्य नग्न प्रतिमाओं का पूजन होता है किंतु वे मूर्तियाँ महात्माओं की हैं। उनसे हमारा हजार मतभेद हो किंतु जिन महात्माओं के लिये स्त्री पुरुप समान, पत्थर और सोना एक सा उनकी नग्न मूर्तियां से मन का भाव नहीं बिगड़ सकता । महाप्रसाद के विषय में मैंने जिन लोगों से छुआछूत न मानने की राय दी है वे ऐसी ही स्थिति के थे । हमारे शास्त्रों में इसी लिये भगवद्भक्तों के बड़े बड़े विड़ाने से, राजा महाराजाओं से ऊँचा आसन दिया है। लोग भले ही ऐसी अटकल लगाया करें किंतु मेरी समझ में यदि यह मंदिर सतयुग का बना नहीं तो हजार वर्ष से कम का भी नहीं है फिर उस समय ऐसी मूर्तियाँ बनाने की क्यों आवश्यकता हुई ? मेरे इस प्रश्न का उत्तर जो एक पंडित ने दिया उसका भाव यही है कि मंदिर शिल्प शास्त्र के नियमों के अनुसार बनाया गया हैं। उन्होंने ताड़ पत्र पर लोहे की लेखनी से लिखे हुए एक प्राचीन ग्रंथ में लिखा हुया बतला दिया कि ऐसी मूर्तियों की बनावट से मंदिर की वजपातादि