पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(३०)

तरह यहां यात्रियों की भीड़ नहीं, मुँड़चिर भिखारियों का जमघट नहीं और यहां तक कि यदि यह लोग किसी को एक पैसा देना चाहे तो कसम खाने के लिए कोई लेने वाला ना मिले। इस सुविस्तीर्ण महासागर के तट पर कोई घाट नहीं,किनारे किनारे मीलों तक चले जाइए, बस्ती से कोस दो कोस जहां तक जी चाहे चले जाइए और जहां जगह अनुकूल दिखाई दे मन भर कर स्नान कर लीजिए। घर से चलते चलते दर्शन करते करते, उटावड़ करते-करते इन्हें देरी भी बहुत हो गई। ये लेग ऐसे समय में पहुंचे हैं। जब समुद्र देवता अपनी विशाल विशाल लहरों का उछाल' उछालकर घरघरआहट की विजय दुंदुंभी बजाते, वायु भैया की सहायता पाकर किनारे पर फटकार का अस्त्र चलाते टकराकर लैट जाते हैं। जहाँ अभी तक रेणुका की राशि पर राशि है वहाँ एक मिनट में जल ही जल । किंतु यह चिरस्थायी नहीं । लोग सच कहते हैं कि समुद्र के "पाल नहीं कार है ।" अथवा यो कहो कि जा पृथ्वी से उसकी पीरी नहीं चलती तब यों ही मन मारकर लौट जाता है। अस्तु ! और कुछ न हो तो हमें समुद्र से दो बातो की शिक्षा अवश्य लेनी चाहिए। एक यह कि “क्षमाखङ्ग' करें यस्य दुर्जना: किं करिष्यति और दूसरी यह कि यदि समुद्र की तरहू हमें हजार बार किनारे को पार कर देने में आकर निष्फत लौट जाना पड़े तब भी निराश नहीं होना चाहिए । पृथ्वी क्षभा की मूर्ति