पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/५७

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को भी नहीं भुले थे कि यदि प्रारब्धवश मेरे लड़के इतने दरिद्रो हो जायँ उनको पनिहारी, पिखनहारी रखने तक की शक्ति न रहे तो पर बहू-बेटियों के जल का घड़ा सिर पर रखकर बाहर न जाना पड़े। इस कारण उन्होंने घर में कुंआ भी ऐसा खुदवा दिया था जिनसे वहू-बेटियाँ घर के भीतर से अहब के साथ पानी भर सके और ऐसे ही वह घर से बन्ने बाहर. वालों के भी काम में आ सके ।

अपने कुकर्म के कारण सुखदा के सजा मिली तब से पति घर परमात्मा उनके हाथ का बनाया जल नहीं करते हैं। रूख सूखा रवाना, मोटा झेाटा पहनना और चटाई पर पड़ रहना, घर से बाहर कभी कदम न रखना बस ये ही उसके लिये जेलखाने की मिहनते हैं। कुछ चांद्रायडू व्रत करने पर, फिर ऐसा अपराध स्वप्न में भी न करने की दृढ़ प्रतिज्ञा करने पर पति ने उसे अपनी धोती धोने का, जूठे बरतन मल देने का अधिकार अवश्य दे दिए हैं । अध जब उन पर बहुत ही कृपा होती है तब वह पति की थोड़ी बहुत जूठन भी पा लेती है किंतु समझ पाठक ! बह कृपा कब होती है ? जब वह स्वयं अपनी आंखोंखे से गोशाला में जाकर गौओं की सेवा में, बछड़े बछियों के लालन पालन में असे मस्त देखते हैं। जब शास्त्रकारों ने--

"आज्ञाभंगो नरेंद्रग्या ब्राह्मणानामनादरः ।
पृथक शय्या च नारीणामशविहिते वधः ।।