पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/५९

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इस कहावत के अनुसर रंग भी अच्छा जम गया है । अब कोई कहती है----‘‘हमने अपनी आँखों से उसे जुतियातें देखा हैं।" किसी का कहना है-.-"हाँ । "हां ! पिटते पिटते उसके सिर के बाल उड़ गए।" इनके बीच में पति का पक्ष लेकर कोई कोई कसम खाने तक को तैयार हैं - मारे नहीं तो क्या करे ? वह अब और हरामजादी इधर उधर ताक झाँक लगाने से बाज नहीं आती" एक बार एक आदमी ने कह दिया कि मेरे पेट में ले कौवे का पर निकला । कौवे का पर पेट में से निकला नहीं था । वहाँ पड़ा देखकर थीं ही उसे भ्रम है। गया था । किंतु जब यह खबर लोगों के कानों पर पड़ी तो एक से दो, दो से चार और यो ही बढ़ते बढ़ते सौ पर हो गए ! पर से कैवे बन गए । बस यही दशा इन दंपती की हैं।

इस तरह बस्ती भर में इनकी निंदा के तह पर तह चढ़ाएं जा रहे हैं किंतु इन दोनों को बिलकुल खबर नहीं कि हमारे लिये लागे ने किस तरह बात का बतंगड़ बना रखा हैं, कैसे हमारी फजीहती की जा रही हैं। बस इसी लिये ऊपर लिखा जा चुका है कि दंपती अपने अपने हाल खयाल में मस्त हैं। उन्हें अपने काम से काम है। दुनिया के झगड़े से कुछ मतलब नहीं । फिर पति को धरधंधों के आगे, अपने काम काज के मारे इतना अवकाश भी तो नहीं मिलता कि किसी के पास दस मिनट बैठकर इधर उधर की गप्पे तो सुन लिया करे ।