पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/७३

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आदमी प्रादालत में जाकर गंगा उठाने को तैयार थे और सबसे बढ़कर पुलिस का रोजनामचा इसके लिए पक्का सुबोध था किंतु यह सलाई ने पसंद न आई । उन्होंने उन लोगों से खुले शब्दों में कह दिया--

“नहीं जी ! यह सलाह अच्छी नहीं। उस दिन मैंने उस आदमी को मारा, इन पर मैं पछताता हूँ। भाई साहब भी मुझसे नाराज होंगे। जैस के साथ वैसा बर्ताव करने में हमारी शोभा नहीं । जिन्हांले बुरा किया है उन्हें परमेश्वर अश्य दंड देगा । देख लेना । और उसे दंड भी न मिले तो क्या ? परमेश्वर उन पर दया करे । यदि बिच्छू भन्ने डंक मारने आदत न छोडे, बेशक वह नहीं छोड़ेगा क्योंकि उसका वह स्वभाव ही है, तो हम उसकी रक्षा करने का काम क्यों छोड़े ? हिंदू उसी उदारता से, ऐसी ही दयादृष्टि से साँप बिच्छू को नहीं मारते और न मारने देते हैं। एक बार एक महाशय जलाशय के किनारे बैठे बैठे संध्या कर रहे थे । एकाएक उनकी दृष्टि जल में पड़े हुए बिच्छू पर पड़ी । उन्होंने जिस हाथ' में लेकर उसे निकाला था बाहर आते ही उसने उसी पर डंक मारा ! डंक मारते ही उनके हाथ से वह जल में गिर गया फिर उन्होंने दया करके उसे निकाला किंतु फिर डंक मारे बिना उससे न रहा गया । यो उन्होने जैसे उसे निकालना न छोड़ा वैसे उसने भी उन्हें डंक मारना न छोड़ा । जय ऐसे ऐसे उदाहरण हमारे सामने विद्यमान हैं, जब घोर