पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/८२

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बातों से मन ही मन कुड़ती थी । उसकी सत्रह अठारह वर्ष की जवान उमर, अच्छा मनोहर गेंडुआ रंग, गोल और सुंदर चेहरा, खंजन की सी लंबी लंबी आँखें, सिर पर मेमों का सा जुड़ा, रेशमी फूलदार साड़ी और पैरों में काले मोजे के ऊपर काली गुन्छेकार जरा जरा सी एड़ी की बढ़िया गुर्गबियाँ थीं । उसके एक हाथ में छाता और दूसरे में एक अँगरेजी किताब के सिवाय आँखे पर सुनहरे फ्रेम का चश्मा चढ़ा हुआ था । हाथों में विलायती सोने की मरोड़ोदार, पतली पतली सी दो दो चूड़ियाँ और दहने हाथ की अनामिका अँगुली में वैसे ही सोने की एक अँगूठी थी । प्रियंवदा को बहुत ही घूरकर देखने पर विदित हुआ कि उस पर लैटिन भाषा का एक शब्द ढुङ्गा हुआ था जिसका अर्थ है "भूल न जाइए ।" वह ललना बार बार उस अँगूठी को देख देखकर मुसकुराती जाती थी और कहीं अँगुली में से वह गिर न जावे इसलिए सँभालती और अँगुली ही में उसे घुमाती जाती थी। दोनों ही दोनों की ओर देख देखकर न मालुम क्या विचार करने लगीं । चाहे पुरूष हो या स्त्री हो किसी नवीन यक्ति को जब कोई देखता है तब उनके मन में कुछ न कुछ भाव अवश्य पैदा हो उठता है । पुरुष पुरुष को देखें तब भाव भिन्न, पुरुष स्त्री को देखे तब भाव अलग किंतु दूसरी स्त्री के देखने पर एक ललना के मन में जो भावनाएं उत्पन्न होती हैं वे विलक्षण हैं । उनको थाह नारी-हृदय के सिवाय किसी को नहीं मिल सकती है । और