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आनन्द मठ


जीवा -"भवानन्द! तुमने क्या पाप किया है, यह तो मैं नहीं जानता; पर हाँ, इतना जानता हूं कि तुम्हारे जीते रहनेसे सन्तानोंका कार्य सिद्ध हो जायगा। मैं चलता हूं।

भवानन्द कुछ देर चुप रहे। अन्तमें बोले। “यदि मरनेका प्रयोजन होगा तो आज मैं ही मरूंगा, नहीं तो जिस दिन प्रयोजन होगा उसी दिन मरूंगा। मृत्युके लिये समय कुलमयका विचार कैसा?”

जीवा०-"तब आओ, चले आओ।"

इसके बाद भवानन्द उसके आगे चले आये। उस समय ढेर-के-ढरे गोले पड़कर सन्तानोंके सैन्यका संहार कर रहे थे। इससे लोग भागने लगे, कहीं औंधे सीधे गिरने लगे, कहीं शत्रुओं के बन्दूकधारी सिपाहियोंने अपने अचूक निशानेसे ढेर-के-ढेर सन्तानोंको मारकर जमीनमें गिरा दिया। इसी समय भवानन्दने कहा--"अब तो सन्तानोंको इस तरङ्गमें कूदना ही पड़ेगा। बोलो, भाइयो! कौन-कौन कूदनेको तैयार हैं? गाओ, वन्देमातरम्।” उस समय ऊचे कण्ठसे मेघमल्लार रागमें सारे सन्तान तोपोंकी आवाजके तालपर "वन्देमातरम्” गान गाने लगे।




दसवां परिच्छेद

वे दसों हजार सन्तान वन्देमातरम् गान गाते, भाले ऊपर उठाये हुए बड़ी तेजीके साथ तोपोंके मोहड़ेकी ओर चल पड़े। लगातार गोले बरसनेसे सन्तान-सेना खंडखंड, विदीर्ण, और अत्यन्त विशृङ्खल हो गयी, तोभी लौटी नहीं। उसी समय कप्तान टामसकी आज्ञाके अनुसार सिपाहियोंका एक दल बन्दूकोंपर सङ्गीनें चढ़ाये सन्तानों के दाहिनी ओरसे आकर उनपर टूट पड़ा। दोनों तरफसे हमला हो जानेके कारण सन्तानगण एक-