पृष्ठ:आनन्द मठ.djvu/१४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४२
आनन्द मठ


पर तोपोंके सामने वह छोटीसी सन्तान-सेना कबतक ठहरती? जैसे किसान पके हुए धानके पौधोंको काट-काटकर बिछाता चला जाता है वैसे ही अंग्रेजों की गोलन्दाज सेना उन्हें मारमारकर गिराती चली गयी।

इसी बीच जीवानन्द बाकी सन्तान सैन्यका मुंह थोड़ा फेरकर बायीं ओरके जंगलकी ओर धीरे-धीरे चले। कप्तान टामसके एक सहकारी लेफ्ट एट वाटसनने दूरसे ही देखा, कि सन्तानोंका एक दल धीरे-धीरे भागा जा रहा है। यह देख, वे कुछ फौजी और कुछमामूली सिपाहियों के साथ जीवानन्दके पीछे दौड़े।

कप्तान टामसने भी यह देख लिया। यह देखकर कि सन्तानोंका प्रधान भाग भागा जा रहा है, उन्होंने कप्तान 'हे' नामक अपने एक सहकारीसे कहा मैं जबतक दो-चार सौ सिपाहियोंको लेकर इन सामनेके छिन्नभिन्न विद्रोहियोंको नष्ट करने में लगा हूं तबतक तुम तोपों और बाकी सिपाहियोंको साथ लेकर उन भागनेवालोंका पीछा करो। बायीं ओरसे लेफ्टएट वाटसन जाही रहा है, दाहिनी ओरसे तुम भी जा पहुंचो। देखो, आगे बढ़कर तुम्हें पुलका मुँह बन्द कर देना होगा जिससे वे लोग तीन ओरसे घिर जायें और जालमें फंसी हुई चिड़ियोंकी तरह मारे जा सकें। वे सब बड़े तेज चलनेवाले देशी सिपाही हैं, भागने में बड़े होशियार होते हैं, इसलिये तुम उन्हें सहज ही न पकड़ सकोगे। घूमघुमाव रास्तेसे घुड़सवारोंको पुलके मुहानेपर ले जाकर खड़ा कर दो, बस, फ़तह हो जायगो।" कप्तान 'हे' ने ऐसा ही किया।

“अति दर्पे हता लङ्का।" कप्तान टामसने सन्तानोंको अत्यन्त तुच्छ समझ कर केवल दो सौ पैदल सिपाही भवानन्दसे लड़नेके लिये रखे और बाकी सबको 'हे' के साथ रवाना कर दिया। चतुर भवानन्दने देखा कि अंग्रेजोंकी तोपें हट गयीं और प्रायः सब सैनिक भी चले गये, अब जो थोड़े-बहुत रह गये हैं उन्हें हम