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पृष्ठ:आनन्द मठ.djvu/१६६

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आनन्द मठ

शान्ति-"अच्छा, स्त्री ही सही।"

महेन्द्र-“अच्छा, यह तो कहो, तुम स्त्री होकर हरदम जीवानन्दजीके साथ क्यों रहती हो?"

शान्ति–“मान लीजिये, कि मैंने यह बात आपसे नहीं कही।"

महेन्द्र-"क्या जीवानन्द यह जानते हैं कि तुम स्त्री हो?"

शान्ति-"हाँ, जानते हैं।"

यह सुनकर विशुद्धात्मा महेन्द्र बड़े ही दुःखित हुए। अब तो कल्याणीसे न रहा गया। वह झट बोल उठी, “ये जीवानन्द महाराजकी धर्मपत्नी, श्रीमती शान्तिदेवी हैं।"

क्षण भरके लिये महेन्द्र के चेहरेपर प्रसन्नता छा गयी। फिर उसपर अँधेरा छा गया। कल्याणी इसका मतलब समझ गयी, बोली-“यह पूर्ण ब्रह्मचारिणी है।"




चौथा परिच्छेद

उत्तरी बंगाल मुसलमानोंके हाथसे निकल गया। पर कोई मुसलमान इस बातको नहीं मानता। वे यही कहकर अपने मनको बहलाया करते हैं कि यह सब-कुछ लुटेरोंकी बदमाशी है। हम अभी उन्हें सर किये डालते हैं। इस तरह कितने दिनोंतक चलता, सो कहा नहीं जा सकता; परन्तु इस समय भगवानकी दयासे वारन हेस्टिंग्ज कलकत्तेमें बड़े लाट होकर आये। वे यों ही मनको बहलाकर रखनेवाले जीव नहीं थे; क्योंकि यदि उनमें यही गुण होता तो आज भारतमें बृटिश राज्यका कहीं पता न चलता। सन्तानोंके शासनके लिये मेजर एडवार्डिस नामके दूसरे सेनापति नयी सेना लिये हुए फौरन आ पहुंचे।

एडवार्डिसने देखा कि यह तो युरोपियनोंकी लड़ाई नहीं है।