पृष्ठ:आनन्द मठ.djvu/१६७

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चौथा परिच्छेद


शत्रुओंके पाल न सेना है, न नगर है, न राजधानी है, न किला है, पर कुछ न होनेपर भी सब कुछ उन्हींके अधीन है। जिस दिन जहाँपर बृटिश सेनाका पड़ाव होता है उसी दिनभरके लिये वहाँ बृटिश सेनाका अधिकार हो जाता है। उसी दिनभरके लिये जब अंगरेजी सेना वहाँसे चली जाती है, तब फिर हर जगह "वन्देमातरम्" का गान होने लगता है। साहबको इस बातकी थाह नहीं लगने पाती कि ये किधरसे टिड्डियोंके दलकी तरह रात-ही-भरमें पैदा हो जाते हैं और जो गाँव अंगरेजोंके दखलमें आता है, उसे जला जाते अथवा थोड़ीसी अंगरेजी फौज होनेसे उसे तत्काल नष्ट कर डालते हैं। अनुसन्धान करते करते साहब को मालूम हुआ कि इन लोगोंने पदचिह्नमें किला बनाया है और वहीं खजाना और सिलहखाना बना रखा है। अतएव उन्होंने निश्चय किया कि उसी किलेको हाथमें कर लेना चाहिये।

उन्होंने जासूसोंसे इस बातकी जोह लेनी शुरू की कि पदचिह्नमें कितने सन्तान रहते हैं। उन्हें जो खबर मिली, उससे उन्होंने किलेपर हमला करना अच्छा नहीं समझा। उन्होंने मन-ही-मन एक बड़ी विचित्र चाल सोची।

माघकी पूर्णिमा आ पहुंची थी। उनके पड़ावसे थोड़ी दूरपर नदीके किनारे एक मेला लगता था। इस बार मेला जोरोंपर था। यों तो हर बार ही यहाँ एक लाख आदमी जमा हो जाया करते थे। अबकी तो वैष्णव राजा हुए थे। उन लोगोंने इस बारके मेलेको और भी भड़कीला बनानेका विचार किया था। इसीसे अनुमान था कि जितने सन्तान हैं, सभी पूर्णिमाके दिन मेलेमें आ पहुंचेंगे। मेजर एडवार्डिसने सोचा कि सम्भव है, पदचिह्नके रक्षकगण भी मेले में ही चले आये। अतएव हम उसी दिन पदचिह्नपर अधिकार कर लेंगे।

इसी अभिप्रायसे मेजरने इस बातकी तमाम शोहरत कर दी कि वे मेलेके दिन वहांके लोगोंपर हमला करेंगे। सब वैष्णव